केवल 18 वर्ष की आयु में मुकेश क्लासिकल शतरंज के 18वें विश्व चैंपियन बन गए. उन्होंने सबसे कम उम्र में यह खिताब पाने का गौरव प्राप्त किया है. सिंगापुर में गुळेस ने चीन के हिंग लिरेन को 7.5-6.5 पॉइंट्स से पराजित किया और इस तरह जो खिताब 2013 में चेन्नई में मैग्नस कार्लसन ने विश्वनाथन आनंद से छीना था. वह एक बार फिर भारत लौट आया है जोकि शतरंज की जन्मस्थली है. आनंद के बाद विश्व चैंपियन बनने वाले गुकेश दुसरे भारतीय है चैंपियनशिप का 14वां व अंतिम क्लासिकल मुकाबला डा की तरफ बढ़ता नजर आ रहा था. हालांकि गुकेश एक प्यादा अधिक थे, लेकिन बाली बराबर की ही थी, जिससे आसानी से डा किया जा सकता था. डिंग भी यही चाहते थे कि क्लासिकल मुकाबला बराबरी पर छूटें ताकि निर्णय टाईचेक के जरिये तय हो. पिछले साल हिंग ने अरताना, कजाखस्थान में रूस के इयान नेपोम्नियाचची को टाईब्रेक में ही हराकर मिश्र खिताब हासिल किया था और वह चीन की तरफ से पहले विश्व चैंपियन बने थे. हिंग इस बार भी मुकाबले को टाईब्रेक में ले जाना चाहते थे, क्योंकि रैपिड व ब्लिट्ज शतरंज में वह खुद को गुकेश से बेहतर खिलाड़ी समझते हैं लेकिन अपनी 53वीं चाल पर वह समय के दबाव में बहुत बड़ी चूक कर बैठे, जिससे विश्व में पांचवीं रैंकिंग के खिलाड़ी मुकेश को स्क (हाणी) व बिशप (ऊंट) एकारचेंज करने का मौका मिल गया और चूंकि यह एक प्यादा बढ़त में थे इसलिए डिंग के पास रिजाइन करने के अतिरिक्त कोई विकल्प न था. इस तरह गुकेश 64-खानों के नये बादशाह बन गए. विश्व चैंपियन को चुनौती देने का अवसर उस खिलाड़ी को मिलता है जो कैंडिडेट्स शतरंज प्रतियोगिता का विजेता होता है. इस साल का कैंडिडेट्स अप्रैल में कनाडा में आयोजित हुआ था, जिसमें गुकेश सबसे कमजोर खिलाड़ी के रूप में शामिल हुए थे. जब यह कैंडिडेट्स में हिस्सा लेने के लिए जा रहे थे तो कार्लसन ने उन्हें एक दोस्ताना सलाह दी थी, “बस कुछ क्रेजी हरकत मत करना, अपने प्रतिद्वंदी को क्रेजी हरकत करने देना. मुकेश उस समय 17 बरस के थे. उन्होंने कैंडिडेट्स जीता और सबसे कम आयु के चैलेंजर बनने का गौरव प्राप्त किया. आनंद पांच बार विश्व चैंपियन रहे और उन्होंने अपना पहला खिताब 2000 में हासिल किया था, जब वह अपने जीवन के 30 बसंत पूरे कर चुके थे. शतरंज एक ऐसा खेल है, जिसमें मात्र प्रतिभा से अधिक महत्व अनुभव का होता है.