दिल्ली : इसरो ने रविवार को स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (स्पेडेक्स) का सफल ट्राकल किया. इसरो ने 2 स्पेस सैटेलाइट के बीच दूरी पहले 15 मीटर, फिर 3 मीटर तक रखी. इसके बाद दोनों सैटेलाइट को वापस सुरक्षित दूरी पर ले जाया गया. स्पेडेक्स मिशन की डाँकिग 2 बार टल चुकी है. पहले 7 जनवरी, फिर 9 जनवरी को डॉकिंग की जानी थी. डॉकिंग मिशन वास्तव में भविष्य की उड़ानों के लिए मील का पत्थर साबित होगा. इस मिशन से जुड़ा एक बड़ा खतरा 2 छोटे अंतरिक्ष यानों की रफ्तार पर लगाम लगाना है. 29,000 किमी की रफ्तार पर पर काबू करने के बाद ही डॉकिंग प्रक्रिया की जा सकेगी. डॉकिंग और अनडॉकिंग असली परीक्षा इस मिशन के तहत किसी अंतरिक्ष यान को ‘डॉक’ और ‘अनडॉक’ करने की क्षमता को प्रदर्शित किया जाएगा सरल शब्दों में कहें तो एक अंतरिक्ष यान से दूसरे अंतरिक्ष यान के जुड़ने को ‘डॉकिंग’ और अंतरिक्ष में जुड़े 2 अंतरिक्ष यानों के अलग होने को ‘अनडॉकिंग’ कहते हैं. यह प्रक्रिया बेहद सावधानी से की जाती है क्योंकि 28,800 किमी की रफ्तार से दूसरे ऑब्जेक्ट से जुड़ने वाले स्पेसक्रॉफ्ट के तेजी से टकराकर खाक होने का सातरा रहता है. यह तकनीक चंद्रयान-4 और गगनयान जैसी भारत की अंतरिक्ष से जुड़ी गहत्वकांक्षाओं के लिए आवश्यक है. इनमें भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण और संचालन के अलावा चंद्रमा पर भारतीय एस्ट्रोनॉट के भेजने जैसी योजनाएं शामिल हैं. इन-स्पेस डॉकिंग’ टेक्नोलॉजी की जरूरत तव होती है जब एक कॉमन मिशन को अंजाम देने के लिए कई रकिट लॉन्च करने की जरूरत होती है. यह एक जटिल काम है. इसे अंजाम देने के लिए बेहद संवेदनशील तरीके से डेटा का इस्तेमाल किया जाता है. यही वजह है कि इसरो हर कदम फूंक-फूंककर रख रहा है.