वर्धा : जलवायु परिवतर्न के कारण तेंदू पेड़ों को असमय फल आने की जानकारी मानद वन्यजीव प्रतिपालक कौशल मिश्र ने अपने निरीक्षण में दर्ज की है. इस दौरा न उन्होंने विविध महत्वपूर्ण जानकारी साझा कर पर्यावरण संरक्षण के लिए उपाय योजना पर मार्गदर्शन किया. मध्य भारत व विदर्भ के वनों में उगने वाला पेड़ तेंदू टेंभरून (डाईओस्पारस मैलो क्जायलम) फेमिली इबैनिआसी यह पेड़ इसकी बहुविधि उपयोग के लिए जाना जाता है जो कि भारत और श्रीलंका के वनों का नेटिव वृक्ष है. इसकी पत्तियों में रोगनाशक गुण होते हैं. तने की लकड़ी अत्यंत कठोर व सहनशील होती है. पत्तों से बीडी बनाई जाती है, जिससे हजारों लोगों को कुछ समय के लिए रोजगार मिलता है. टेंभरून वृक्ष बहुतायत में वन्यजीवन में पनपता है. हिरनवर्गीय जंगली पशु इन वृक्षों के आसपास ही रहते हैं. कौशल मिश्र के द्वारा यह बताया गया कि मौसमी परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) को देखते हुए इस वृक्ष के फल धारणा व परिपक्व काल में परिवर्तन हो रहा है. तेंदू फलों का अस्वाद मनुष्यों व पशु दोनों के लिए बहुत ही लाभकारी होता है परंतु देखा यह जा रहा है कि इसके कुछ पेड़ों के फल नवंबर-दिसंबर में ही परिपक्व होने लगे हैं, जो कि होना चाहिये अप्रैल के महीने में आगे इस प्रणाली का असर अच्छा होगा या बुरा परंतु कई मायनो में कुछ वन्य पशुओं, कीडें, चीटीओं का जो परंपरागत संबंध समयावधी के अनुसार इस पेड़ के साथ है वह बदल रहा है. इको सिस्टम में इसके परिणाम फल परिपक्व होने के काल में बदल के कारण आगे जा कर प्राणी, कीटकों के व्यवहार में भी नजर आएंगे.