दिल्ली- क्या दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार हटाकर उपराज्यपाल राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं? राजनीति में दिलचस्पी लेने वाले हर व्यक्ति के मन में यह सवाल इन दिनों बना हुआ है. आप नेताओं के दावे ने इन चर्चाओं को और भी ज्यादा गर्म कर दिया है.
शुक्रवार को आम आदमी पार्टी के 2 नेताओं ने बैक-टू-बैक दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू करने की आशंका जाहिर की. इनमें पहला नाम मंत्री आतिशी तो दूसरा नाम मंत्री सौरभ भारद्वाज का है.
प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए आप सरकार के मंत्री आतिशी ने कहा, हमें विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि आने वाले दिनों में दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू किया जाएगा, लेकिन दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाना गैरकानूनी और जनादेश के खिलाफ होगा.
आप नेताओं के दावे के इतर 3 संकेत ऐसे हैं, जिससे राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली राष्ट्रपति शासन की तरफ बढ़ता दिख रहा है.
राष्ट्रपति शासन क्या है और इसे कैसे लागू किया जाता है?
भारत के संविधान में राज्यों में सरकार के अस्थिर होने की स्थिति में राष्ट्रपति शासन लागू करने का प्रावधान है. संविधान के अनुच्छेद 239 में इसके बारे में विस्तार से बताया गया है.
राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश राज्यपात को केंद्रशासित प्रदेश में उपराज्यपाल करता है. उपराज्यपाल की सिफारिश पर केंद्रीय गृह मंत्रालय शासन की रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजता है.
राष्ट्रपति के मुहर लगते ही उक्त राज्य में यह शासन लागू हो जाता है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने बोम्मई केस में राष्ट्रपति शासन लागू करने से पहले कई पैमानों को ध्यान में रखने की हिदायत दी थी.
वो 3 कारण, जिससे राष्ट्रपति शासन की ओर बढ़ रही है दिल्ली
प्रशासन में असमंजस की स्थिति, एलजी 2 बार लिख चुके हैं चिट्ठी
राजधानी दिल्ली में प्रशासनिक अधिकारियों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है. अरविंद केजरीवाल के जेल जाने के बाद आप ने कहा था कि वे जेल से ही अधिकारियों की मीटिंग लेंगे, लेकिन बीते 15 दिनों में किसी भी अधिकारियों के साथ उनकी बैठक नहीं हुई है.
आप नेताओं का आरोप है कि मुख्यमंत्री को उनकी पत्नी से भी ठीक तरीके से मिलने नहीं दिया जा रहा है.
वहीं दिल्ली के एलजी वीके सक्सेना प्रशासनिक स्थिति को लेकर गृह मंत्रालय को 2 बार चिट्ठी लिख चुके हैं. 4 अप्रैल को पहली चिट्ठी और 9 अप्रैल को दूसरी चिट्ठी गृह मंत्रालय को लिखी थी.
एलजी ने अपनी दूसरी चिट्ठी में आप सरकार के मंत्रियों की शिकायत की थी. उनके मुताबिक बुलाने के बाद भी सरकार के मंत्री एलजी मीटिंग में शामिल नहीं होते हैं.
एलजी दफ्तर से जुड़े सूत्रों ने मीडिया को बताया कि उपराज्यपाल प्रशासनिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए मंत्रियों से सलाह लेना चाहते थे, लेकिन मंत्री नहीं आए.
बीजेपी नेता और दिल्ली विधानसभा में मुख्य सचेतक अजय महावर कहते हैं- आम आदमी पार्टी दिल्ली को राष्ट्रपति शासन की ओर धकेलना चाहती है. उसे नया नेता का चुनाव करना चाहिए, जिससे शासन-प्रशासन सुचारू रूप से चल सके, लेकिन जिद पर अड़ी हुई है.
महावर के मुताबिक आम आदमी पार्टी राष्ट्रपति शासन के जरिए सहानुभूति कार्ड खेलना चाहती है.
कार्यकाल में 10 महीने शेष, कोर्ट जाने पर भी राहत मुश्किल
दिल्ली विधानसभा का कार्यकाल फरवरी 2025 तक है. यानी अब से 10 महीने बाद यहां विधानसभा के चुनाव होंगे. अभी अगर राष्ट्रपति शासन लगता है तो इसकी गुंजाइश कम ही है कि कोर्ट से इस पर तुरंत आप को राहत मिले.
देश में यह पहला केस है, जब कोई मुख्यमंत्री जेल में है. अब तक परंपरा के मुताबिक जेल जाने से पहले मुख्यमंत्रियों का इस्तीफा हो जाता था, लेकिन पहली बार अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा नहीं दिया है.
सीएम का जेल जाने पर इस्तीफा देने का कोई प्रावधान नहीं है. यही वजह बताकर आप केजरीवाल का बचाव कर रही है. ऐसे में अगर मामला कोर्ट पहुंचता है, तो इस पर विस्तृत सुनवाई की जरूरत पड़ सकती है.
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के मामले में भी कोर्ट में विस्तृत सुनवाई हुई थी और इसमें करीब 10 महीने का वक्त लगा था. कुछ मामले अभी भी कोर्ट में पेंडिंग है.
राष्ट्रपति शासन को चुनौती देने के कई अन्य मामलों में भी लंबी सुनवाई चली थी. मसलन, 2005 में बिहार मामले में करीब 8 महीने बाद कोर्ट ने फैसला सुनाया था.
राजनीतिक आंकड़े भी राष्ट्रपति शासन को दे रहे बल
राष्ट्रपति शासन लगाने की चर्चा के पीछे राजनीतिक आंकड़े भी हैं. क्रिश्चिन ब्रॉज्नस्कॉव और श्रुति राजगोपालन की टीम ने भारत में राष्ट्रपति शासन और उसके राजनीतिक प्रभाव पर एक शोध किया है.
अध्ययन के मुताबिक 1952 से 2019 तक 123 बार राष्ट्रपति शासन राज्यों में लगाए गए. केंद्र सरकार की ओर से अधिकांशत: राष्ट्रपति शासन राजनीतिक जमीन हथियाने के लिए लगाया गया.
शोध के मुताबिक 44 पार्टियां ही राष्ट्रपति शासन के बाद हुए चुनाव में सरकार वापसी करा पाई. इतना ही नहीं, 123 बार जो राष्ट्रपति शासन लगे, उसमें से 24 मुख्यमंत्री ही आगामी चुनाव में अपनी कुर्सी बचा पाए.
मोदी सरकार के वक्त 2016 में उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाया गया था. उस वक्त वहां हरीश रावत की सरकार थी. 2017 के विधानसभा चुनाव में रावत अपनी सरकार नहीं बचा पाए थे.