साथी दलों के आमने-सामने आने से, वोटर कन्फ्यूज
भंडारा, नामांकन के आखरी ही दिन सभी पार्टियों ने अपने अधिकृत साथ ही भंडारा जिले में महायुति और महाविकास आघाडी का भ्रमनाट्य पूरी तरह फुट चुका है. विधानसभा चुनाव में एक-दूसरे के लिए प्रचार करने वाले भाजपा, शिंदे सेना और अजित पवार की राष्ट्रवादी अब सीधे-सीधे एक-दूसरे की काट बनकर मैदान में उत्तर गए हैं. इसी तरह कांग्रेस और शरद पवार की राष्ट्रवादी भी एक दूसरे से भीड़ गए हैं. जिस गठबंधन को ताकत की मिसाल बताया जाता था, वही गठबंधन आज वोटरों में भारी भ्रम और घमासान पैदा कर रहा है.
चारों नगरपालिकाओं भंडारा, पवनी, तुमसर और साकोली में महायुति के तीनों घटक दल और आघाड़ी के दो दल अपने बलबुते की दलील देकर सीधे-सीधे टक्कर देने उतरे हैं. अब तक सिर्फ बाहर वालों से लड़ने वाली महायुति और आघाड़ी इस बार खुद ही अपने अंदर की लड़ाई में फंसकर फट पड़ी है. कुछ महीनों पहले एक-दूसरे के लिए वोट मांगने वाले नेता अब आरोप-प्रत्यारोप की गोलाबारी में जुटे हैं. नतीजा-वोटरों में जबरदस्त कन्फ्यूजन पैदा हो गया है. किसे वोट दें, किसे छोड़ें-कोई तय नहीं कर पा रहा है.
राष्ट्रवादी (अजित पवार गट) और भाजपा में गठबंधन की चर्चा थी, लेकिन भाजपा के स्वयबल के ऐलान ने सारी संभावना साफ खत्म कर दी. तीनों दलों के स्वतंत्र उम्मीदवारों के ऐलान के साथ
दिग्गजों में प्रतिष्ठा युद्ध
यह चुनाव कार्यकर्ताओं का नहीं-दिग्गजों की प्रतिष्ठा का युद्ध है. भंडारा जिले को नगरपालिका चुनावें अब स्थानीय नहीं रहीं. दिग्गज नेताओं का दांव लगा है. भाजपा के विधायक परिणय फुके और शिंदे सेना के विधायक नरेंद्र भोंडेकर और कांग्रेस के विधायक नाना पटोले तीनों नेता अब एक-दूसरे के सीधे प्रतिद्वंद्वी बन चुके हैं. भंडारा, पवनी, साकोली और तुमसर-चारों जगहों पर बड़े पैमाने पर निर्दलीय उम्मीदवारों की बगावत सामने आ रही है. कांग्रेस के नाना पटोले के लिए भी यह चुनाव प्रतिष्ठा की कसौटी बन गया है.
महायुति और आघाडी पूरी तरह चकनाचूर होती दिख रही है. प्रमुख दलों की महिलाएं भंडारा में आमने-सामने भीड़ गई हैं. महायुति यहां एक-दूसरे को पटखनी देने के लिए पूरा जोर लगा रही है. तुमसर में बगावत, धमाके और नौटंकी का गढ़ बन गया है. तुमसर में बगावत चरम पर है. भाजपा की कल्याणी भुरे ने महिलाओं को तवज्जो न मिलने का आरोप लगाकर धनुष्य-बाण धाम लिया, और सीधे शिंदे गट में चली गई. राष्ट्रवादी में भी विद्रोह चरम पर है. अभिषेक कारेमोरे को टिकट मिलते ही कार्यकर्ताओं का गुस्सा फूट पड़ा क्योंकि वे पहले राजू कारेमोरे के खिलाफ चुनाव में प्रचार कर चुके थे.



