नागपुर, हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 106 के तहत किसी भी जांच एजेंसी के पास बैंक खाते को अटैच या ‘डेविट फ्रीज’ करने का अधिकार नहीं है. बैंक खाता फ्रीज किए जाने को चुनौती देते हुए कार्तिक चतुर एवं अन्य की ओर से हाई कोर्ट में फौजदारी रिट याचिका दायर की गई. इस पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश अनिल पानसरे और न्यायाधीश राजवाडे ने फैसला दिया. याचिकाकर्ताओं की ओर से प्रतिवादी साइबर साउथ वेस्ट डिवीजन, बेताला की ओर से अधि. संजय करमरकर ने पैरवी की. उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ताओं के खाते कथित साइबर धोखाधड़ी के कारण धारा 106 BNSS के तहत डेबिट फ्रीज कर दिए गए थे क्योंकि कथित धोखाधड़ी की राशि का एक हिस्स्य उनके खातों में जमा किया गया था.
इलेक्ट्रॉनिक्स
Gandhisagar, Subhash Road, Nagpur Manishnagar, Besa T-Point, Nagpur अधि. महेन्द्र लिमये और
रद्द कर दिया आदेश
जिसे कोर्ट ने सभी पक्षों के वकीली को सुनने के बाद जांच एजेंसी द्वारा धारा 106 BNSS के तहत खाती की डेबिट प्रीिज करने के लिए पारित किए गए आदेशों को रद्द और निरस्त कर दिया, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि कई मामलों में जांच एजेंसी ने बैंक को ऐसा कोई पत्र जारी भी नहीं किया था. फिर भी बैंक ने अपने आप ही खातों को डेबिट फ्रीज करने का निर्णय लिया, कोर्ट ने एक रहस्य बताया, कोर्ट ने संबंधित याचिकाकर्ताओं को इस कार्रवाई के लिए उचित कानूनी कार्यवाही दायर करके मुआवजा मांगने की अनुमति दी. कोर्ट ने फैसले में कानून की स्थिति को सुस्थापित बताया, यह निर्णय केरल हाई कोर्ट के हेडस्टार ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड बनाम केरल राज्य और अन्य मामले में दिए गए फैसले पर आधारित है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी चुनौती देने से इनकार कर दिया था.
बैंकों के लिए दिशानिर्देश
कोर्ट ने बैंकों को निर्देश दिया कि उन्हें ‘सिटीजन फाइनेंशियल साइबर फॉ रिपॉटिंग एंड मैनेजमेंट सिस्टम’ के प्रावधानों के अनुसार कार्य करना चाहिए, जिसे गृह मंत्रालय, भारत सरकार के तहत इंडियन साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर द्वारा प्रकाशित किया गया है. इस सिस्टम के FAQ संख्या 21 का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने बताया कि बैंक विकेलिए शिकायत पावती संख्या के आधार पर विवादित राशि को लंबित रख सकते हैं, ताकि जांच के बाद राशि वापस की जा सकें. लेकिन वे खाते को डेबिट फ्रीज नहीं कर सकते,



