भंडारा, नगर परिषद चुनाव अब अंतिम चरण में पहुंच चुके हैं. चारों नगर पालिकाओं में शिंदे शिवसेना ने जहां पूरी ताकत झोंक दी है, वहीं भाजपा और राष्ट्रवादी (अजित पवार गट) ने भी उतना ही दमखम दिखाया है. महायुति के घटक दलों के बीच आंतरिक मुकाबले ने इस चुनावी वातावरण को और अधिक रोचक बना दिया है. इस पूरे मुकाबले के केंद्र में विधायक नरेंद्र भोंडेकर हैं, जिनकी संगठन क्षमता और नेतृत्व कौशल की यह सबसे बड़ी परीक्षा मानी जा रही है.
चुनाव मैदान में: भंडारा, पवनी, तुमसर
महायुति के दल अलग-अलग और साकोली नगर पालिकाओं में उन्होंने अपने उम्मीदवार उतारकर स्वतंत्र प्रभाव स्थापित करने की रणनीति अपनाई है. विधानसभा चुनाव के तुरंत बाद ही नरेंद्र भोंडेकर ने नगर परिषद चुनाव की व्यापक
तैयारी शुरू कर दी थी. पिछले छह महीनों से वे भंडारा, पवनी, तुमसर और साकोली में संगठन को मजबूत करने में जुटे रहे. इस बार महायुति के सभी घटक दल अलग-अलग मैदान में हैं, जिसके चलते मुकाबला अत्यंत दिलचस्प और प्रतिष्ठापूर्ण बन गया है.
वोटों को होगा विभाजन भंडारा नगरपरिषद के अध्यक्ष पद के लिए शिंदे शिवसेना ने विधायक की पत्नी डॉ. अश्विनी भोंडेकर को उम्मीदवार बनाया है. भंडारा शहर के सामाजिक जातीय समीकरण में तेली, कुणबी, बौद्ध सहित
कई प्रभावशाली घटक हैं. इन वोटों का विभाजन किसके पक्ष में जाता है, यह देखना दिलचस्प होगा. उनके मुकाबले में कांग्रेस की जयश्री बोरकर, भाजपा की मधुरा मदनकर, और राष्ट्रवादी (अजित पवार गट) की सुषमा साखरकर मैदान में हैं. पवनी शहर में शिंदे शिवसेना ने पूर्व उपाध्यक्ष की पत्नी प्रगति बावनकर को टिकट दिया है. नामांकन के दिन स्वयं विधायक भोंडेकर वहां मौजूद थे, जिससे मुकाबले का महत्व बढ़ गया है. तुमसर में शिंदे शिवसेना ने भाजपा की पूर्व महिला जिलाध्यक्ष कल्याणी भुरे को अपनी पार्टी में शामिल कर बड़ा झटका दिया है. वहीं साकोली में वंदना पोहाने मैदान में हैं. साकोली को छोड़कर बाकी तीनों नगर पालिकाओं में शिंदे शिवसेना ने बेहद मजबूत उम्मीदवार उतारे हैं, ऐसा राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है.
फुके-भोंडेकर में मतभेद हुए उजागर
विधानसभा चुनाव के बाद से भाजपा विधायक डॉ. डॉ. परिणय फुके और नरेंद्र भोंडेकर के बीच मतभेद खुले रूप में दिखाई दे रहे हैं. भोंडेकर के करीबी एक व्यक्ति को भाजपा में शामिल किए जाने के बाद विवाद और बढ़ गया. इसके अलावा नगर परिषद की कमिशन संबंधी चर्चा ने भी तनाव बढ़ाया. इसी कारण नाराज भोंडेकर ने हर हाल में भाजपा से अधिक नगरसेवक और नगराध्यक्ष जिताने का संकल्प लिया है. एक अर्थ में यह चुनाव महायुति के भीतर के संघर्ष को और तीव्र करने वाला साबित हो रहा है.
आगामी चुनावी रणनीतियों की पूरी श्रृंखला सक्रिय
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि इस चुनाव में ‘साम, दाम, दंड, भेद’ सभी रणनीतियों का जमकर उपयोग होगा.
शिंदे शिवसेना ने प्रभागवार सामाजिक समीकरण, स्थानीय प्रभाव, जातीय आधार और जनाधार का विस्तृत अध्ययन कर टिकट वितरण किया है.
दूसरी ओर भाजपा और राष्ट्रवादी (अजित गट) भी पूरी तैयारी के साथ रणनीतिक कदम उठा रहे हैं.
शिंदे शिवसेना, भाजपा और राष्ट्रवादी (अजित गट)- ये तीनों दल विधानसभा में एक साथ थे, लेकिन नगर परिषद चुनाव में अलग-अलग उतरने से वोटों का विभाजन अत्यंत जटिल हो गया है.
स्थानीय स्तर पर गुटबाजी और उम्मीदवारों की व्यक्तिगत छवि अंतिम परिणाम पर निर्णायक प्रभाव डालने वाली होगी, इसमें कोई संदेह नहीं है.



