भंडारा- जिला अस्पताल, जो आम जनता के इलाज का प्रमुख केंद्र है, अब खुद इलाज का मोहताज बन गया है। सरकारी खानापूर्ति और दिखावे के चलते अस्पताल की सिर्फ बाहरी सुंदरता पर ध्यान दिया जा रहा है, जबकि अंदर की हालत भयावह बनी हुई है।
छतों से सरिए (लोहे की सलाखें) बाहर झाँक रहे हैं, दीवारें दरक चुकी हैं, और जगह-जगह से मलबा झर रहा है। यह जर्जर ढांचा कभी भी किसी बड़े हादसे को जन्म दे सकता है। मरम्मत कार्य केवल सतही स्तर पर — पेंटिंग और रंग-रोगन तक सीमित है — जबकि असली दुरुस्ती की ओर कोई गंभीरता नहीं दिखाई दे रही।
स्थानीय नागरिकों और मरीजों का आरोप है कि प्रशासन जनता की आँखों में धूल झोंक रहा है। वर्षों पुरानी इमारत में केवल दिखावे के लिए खर्च किए जा रहे लाखों रुपये शासन के संसाधनों की बर्बादी हैं। सवाल यह भी उठ रहा है कि जब हालत इतनी खराब है, तो जिला शल्य चिकित्सक डॉ. सोयम मौन क्यों हैं?

नेताओं का दबाव या प्रशासनिक लापरवाही?
चर्चाओं के अनुसार, डॉ. सोयम पर किसी राजनीतिक नेता का हाथ है, जिसके चलते वे निर्भीक होकर जर्जर इमारत पर केवल सतही काम करवा रहे हैं। लाखों रुपये की फंडिंग केवल पेंटिंग में उड़ा दी गई, जबकि ढांचे की असली मरम्मत अब भी अधूरी है। जनता अब जानना चाहती है — क्या दिशा भूल कर काम करने वाले अफसरों पर कोई कार्रवाई होगी या फिर मामला यूँ ही दबा दिया जाएगा?
प्रशासन से तीखे सवाल:
• क्या नेताओं के दबाव में अस्पताल की वास्तविक हालत को छिपाया जा रहा है?
• अधूरी मरम्मत कर जनता की जान जोखिम में डालने वालों पर कब गिरेगी गाज?
• शासन के लाखों रुपये की बर्बादी के लिए कौन जिम्मेदार होगा?
• क्या कोई बड़ा हादसा होने के बाद ही जिम्मेदारों की नींद खुलेगी?
भंडारा जिला अस्पताल की मौजूदा स्थिति सरकारी दावों और जमीनी सच्चाई के बीच बढ़ती खाई को उजागर करती है। जनता के बीच आक्रोश साफ है — सवाल अब सिर्फ अस्पताल की मरम्मत का नहीं, बल्कि पूरी व्यवस्था की जवाबदेही का है। अब देखना यह है कि प्रशासन जागता है या फिर किसी बड़ी त्रासदी का इंतजार करता है।