वॉशिंगटन : 2001 से 2022 तक अमेरिका में सभी अवैध भारतीय अप्रवासियों में पंजाबी बोलने वाले शरणार्थियों की संख्या सर्वाधिक थी, लेकिन हाल के वर्षों में हिंदी बोलने वाले अवैध भारतीय उनसे आगे निकल गए हैं. जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के विश्लेषण में पाया गया कि 2001 से 2022 तक भारतीय नागरिकों द्वारा दायर सभी शरण याचिकाओं में से लगभग 66% पंजाबी बोलने वालों की ओर से आई थीं. उस समयावधि में भारतीय अवैध अप्रवासियों में हिंदी बोलने वालों की हिस्सेदारी 14% थी. हालांकि, 2017 और 2022 के बीच अमेरिका में हिंदी बोलने वाले अवैध नागरिकों की संख्या में 30% की वृद्धि हुई
भारतीयों के प्रवास में 5 साल में 470% का उछाल
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन के अनुसार भारतीयों के शरण के दावे 2020 में 6,000 से बढ़कर 2023 में 51,000 से अधिक हो गए. यह उनके प्रवास की संख्या में 8 गुना वृद्धि है. पिछले 5 वर्षों में अमेरिका में शरण चाहने वाले भारतीयों की कुल संख्या में 470% की वृद्धि हुई है. परंपरागत रूप से हिंदी बोलने वाले भारतीय शरण के मामलों का लगभग 14% हिस्सा हैं. हालांकि, ट्रांजेक्शनल रिकॉ एक्सेस क्लियरिंगहाउस (टीआरएसी) के डेटा से पता चलता है कि 2017 और 2022 के बीच यह हिस्सा लगभग दोगुना होकर 30% हो गया है. शरण मांगने वालों में अंग्रेजी बोलने वालों लगभग 8% रहो, तो इसके बाद गुजराती बोलने वालों 7% थे.
63% पंजाबी और 25% गुजराती भाषियों को मिली शरण
अमेरिकी आव्रजन न्यायाधीशों ने पंजाबी भाषियों से जुड़े 63% मामलों और हिंदी भाषियों से जुड़े 58% मामलों को मंजूरी दी है, लेकिन गुजराती भाषियों द्वारा दायर याचिकाओं में से केवल 25% को ही मंजूरी दी गई. बुदिमन और कपूर के शोध में कहा गया है कि आर्थिक कारण अवैध आव्रजन के पीछे एक प्रमुख कारण हैं. यह 2019-2022 अमेरिकी सामुदायिक सर्वेक्षण के आंकड़ों से भी स्पष्ट होता है कि अमेरिका में रहने वाले सभी भारतीयों में से घर पर पंजाबी बोलने वालों की औसत आय लगभग 48,000 डॉलर के साथ सबसे कम है. इसकी तुलना में गुजराती भाषी औसतन लगभग 58,000 डॉलर कमाते हैं. आय में यह अंतर बताता है कि पंजाब जैसी जगहों पर आर्थिक संघर्ष लोगों को बेहतर वित्तीय अवसरों की तलाश में पलायन करने के लिए प्रेरित करता है.