सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पति-पत्नी के बीच जारी विवाद को सुलझाते हुए स्पष्ट किया कि शादी का टूटना जीवन का अंत नहीं होता। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति हो सकती है, लेकिन इसे दोनों पक्षों के लिए एक नई शुरुआत के रूप में देखना चाहिए।
इस फैसले के तहत अदालत ने तलाक की अनुमति दी और इस मामले से जुड़ी 17 अन्य कानूनी कार्यवाहियों को खत्म कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 का उपयोग करते हुए तलाक की मंजूरी दी। यह अनुच्छेद न्यायालय को यह अधिकार देता है कि वह न्याय सुनिश्चित करने के लिए कोई भी आवश्यक निर्णय ले सके।
न्यायमूर्ति अभय ओका की अगुवाई वाली पीठ ने मामले की सुनवाई की और मई 2020 में हुई शादी को समाप्त करने का फैसला सुनाया। यह जोड़ा शादी के बाद से लगातार विवादों में था और एक-दूसरे के खिलाफ घरेलू हिंसा और उत्पीड़न जैसे गंभीर आरोप लगाए थे। इनके बीच 17 मुकदमे चल रहे थे, जिससे रिश्ते में तनाव बढ़ता जा रहा था।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कानूनी लड़ाई को लंबा खींचने से कोई समाधान नहीं निकलता। इसके बजाय, दोनों पक्षों को शांतिपूर्वक अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहिए। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि संवैधानिक अधिकारों का उपयोग न्याय और सौहार्द स्थापित करने के लिए होना चाहिए, न कि विवाद बढ़ाने के लिए।