लोकलुभावन योजनाओं से खाली हुई महाराष्ट्र सरकार की तिजोरी, खर्च में कटौती का फैसला
महाराष्ट्र में बीजेपी, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजीत पवार की राकांपा के गठबंधन वाली ‘महायुति’ सरकार ने 2024 के विधानसभा चुनाव में ‘मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहिण’ (लाडली बहन) और ‘अन्नपूर्णा’ जैसी योजनाओं के बलबूते शानदार जीत हासिल की थी। लेकिन इस जीत की भारी कीमत सरकार को अब चुकानी पड़ रही है। वित्त विभाग और विपक्ष की पूर्व में दी गई चेतावनी सही साबित हुई है, और अब राज्य सरकार को विभिन्न विभागों में 5-30% तक की बजट कटौती करनी पड़ रही है।
बजट संकट और सरकारी खर्च में कटौती
राज्य सरकार ने मार्च 2025 को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष में 100% बजट खर्च नहीं करने का निर्णय लिया है। हाल ही में जारी सरकारी प्रस्ताव के अनुसार, चुनावों से पहले घोषित लोकलुभावन योजनाओं के कारण सरकारी खातों पर दबाव बढ़ गया है, जिससे वित्तीय संतुलन बनाए रखना मुश्किल हो रहा है।
- 30% कटौती : इमारतों और सड़कों के निर्माण, सरकारी वाहनों की खरीद और प्रचार अभियानों पर।
- 20% कटौती : ओवरटाइम भत्ता, टेलीफोन और पानी के बिल, किराया, हथियार और गोला-बारूद, ईंधन और अन्य वाणिज्यिक सेवाओं के बजट में।
राजकोषीय घाटा बढ़ने का खतरा
अगर बजटीय आवंटन का 100% जारी किया जाता, तो वित्त वर्ष 2024-25 में महाराष्ट्र का अनुमानित राजकोषीय घाटा 1.10 लाख करोड़ से बढ़कर 2 लाख करोड़ रुपए के पार पहुंच सकता था।
विपक्ष का हमला और सरकार का बचाव
विपक्ष ने इसे सरकार की ‘अर्थव्यवस्था को बिगाड़ने वाली नीति’ करार देते हुए तीखा हमला बोला है। उनका कहना है कि लोकलुभावन योजनाओं को बिना ठोस आर्थिक रणनीति के लागू करने से राज्य की आर्थिक स्थिति चरमरा गई है। दूसरी ओर, सरकार का दावा है कि यह कदम अस्थायी है और जल्द ही वित्तीय स्थिरता बहाल कर दी जाएगी।
अब देखने वाली बात यह होगी कि महायुति सरकार इस वित्तीय संकट से कैसे उबरती है और क्या चुनावी लाभ के लिए शुरू की गई योजनाएं लंबे समय तक टिक पाएंगी या नहीं।