यहां मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की संभावनाओं को लेकर स्थिति जटिल होती जा रही है। राज्य में अंतिम बार विधानसभा सत्र 12 अगस्त 2024 को हुआ था, और संवैधानिक नियमों के अनुसार, किसी भी विधानसभा या संसद का सत्र अधिकतम 6 महीने के भीतर बुलाना अनिवार्य होता है। इस नियम का पालन नहीं किए जाने पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। चूंकि 12 फरवरी 2025 तक मणिपुर में विधानसभा सत्र नहीं बुलाया गया, इसलिए अब राष्ट्रपति शासन लागू होने की संभावनाएं बढ़ गई हैं।
इस बीच, राज्य में हिंसा की घटनाओं ने स्थिति को और अधिक गंभीर बना दिया है। राजनीतिक अस्थिरता के बीच 9 फरवरी को मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अब तक नए मुख्यमंत्री के नाम पर सहमति नहीं बना पाई है। इससे राज्य में प्रशासनिक संकट गहराता जा रहा है।
केंद्र सरकार ने इस संवैधानिक संकट को लेकर सॉलिसिटर जनरल से कानूनी सलाह मांगी है। अगर कोई समाधान नहीं निकला तो संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। इस स्थिति में राज्य की सत्ता सीधे केंद्र सरकार के नियंत्रण में आ जाएगी और राज्यपाल को प्रशासनिक अधिकार मिल जाएंगे।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भाजपा जल्द ही नए मुख्यमंत्री की नियुक्ति नहीं कर पाती या विधानसभा सत्र बुलाने में असमर्थ रहती है, तो केंद्र सरकार के पास राष्ट्रपति शासन लगाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचेगा। ऐसे में आने वाले दिनों में मणिपुर में राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदल सकते हैं।