दिल्ली में आम आदमी पार्टी (AAP) की हार का असर अब पंजाब पर भी पड़ सकता है, क्योंकि मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने दिल्ली मॉडल को पंजाब में लागू करने की कोशिश की थी। उन्होंने मुफ्त बिजली, राशन वितरण जैसी योजनाओं का ऐलान किया था, जो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के वादों का अनुसरण करती थीं। हालांकि, अब मान को अपनी सरकार को स्थिर बनाए रखने के लिए केवल घोषणाओं की बजाय जमीनी स्तर पर जनकल्याण की योजनाओं को लागू करना होगा। खजाने में पैसे की कमी के चलते कई घोषणाएं अभी तक केवल कागजों पर ही सीमित रही हैं।
इसके साथ ही, पंजाब में कांग्रेस की भूमिका भी महत्वपूर्ण होगी। कांग्रेस के लगभग 30 विधायक पहले आम आदमी पार्टी में शामिल हो चुके हैं, और अब यह सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस पंजाब में आम आदमी पार्टी को सत्ता से बाहर करने के लिए एक तिहाई विधायकों को तोड़ने की रणनीति अपनाएगी, जैसा कि महाराष्ट्र में बीजेपी ने शिवसेना के साथ किया था। अगर केजरीवाल का नेतृत्व कमजोर पड़ता है, तो क्या भगवंत मान उनके खिलाफ बगावत करेंगे?
दूसरी संभावना यह भी है कि केजरीवाल पंजाब में मुख्यमंत्री बनने के इच्छुक हो सकते हैं, और भगवंत मान को उपमुख्यमंत्री पद के लिए राजी कर सकते हैं। दिल्ली में एलजी के दबाव के चलते केजरीवाल को अपनी सरकार चलानी पड़ती थी, लेकिन पंजाब में उनके पास पूर्ण राज्य अधिकार होंगे, जिससे वे अधिक प्रभावी हो सकते हैं।
अंत में, पंजाब में बीजेपी की स्थिति भी मजबूत हो सकती है, खासकर अगर वे 2027 के विधानसभा चुनावों में डबल इंजन सरकार के वादे के साथ अपनी ताकत बढ़ाते हैं, क्योंकि मोदी की ताकत से किसी भी बदलाव की उम्मीद की जा सकती है।