नागपुर : किसी भी वायरल और बैक्टीरियल इन्फेक्शन होने पर प्रोटोकॉल के अनुसार औषधोपचार किया जाता है. पहले तीन या पांच दिन की दवाई दी जाती है. इसके बाद भी राहत न मिले तो फिर डाक्टर एंटीबायोटिक्स की खुराक देते थे लेकिन वर्तमान में देखने को मिल रहा है कि कई डॉक्टर पहली ही दफा एंटीबायोटिक्स की खुराक दे देते हैं. इससे बीमारी तो ठीक हो जाती है लेकिन कई बार शरीर में इसके साइड इफेक्ट भी देखने को मिलते हैं. इतना ही नहीं, एंटीबायोटिक्स का आदी हो चुका शरीर अब हाई स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक्स तक पहुंच गया है. ग्रामीण भागों में अन्य पैथी के डॉक्टर भी मरीजों को एंटीबायोटिक्स लिखने लगे हैं. इतना ही नहीं, कई दवाई की दुकानों में बिना डॉक्टर की पर्ची भी उक्त दवाई मिल जाती है. नियमानुसार डॉक्टर की सलाह पर ही एंटीबायोटिक्स दी जानी चाहिए. शरीर में बैक्टीरिया, वायरस के संक्रमण के दौरान प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए एंटीबायोटिक्स का प्रयोग किया जाता है. इससे स्वास्थ्य में जल्दी सुधार होता है. सर्दी, जुकाम, खांसी जैसी मामूली बीमारी में एंटीबायोटिक्स का प्रयोग टालना चाहिए. कई बार मरीजों की मांग पर भी डॉक्टरों को लिखना पड़ता है. वर्तमान में सेल्फ मेडिकेशन का ट्रेंड बढ़ गया है. इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के आधार पर कई मरीज दवाई की दुकानों से खुद ही मर्जी की टवार्द खरीट लेते हैं ग्रामीण भागों में अन्य पैथी के अलावा झोलाछाप डॉक्टर भी एंटीबायोटिक्स लिख रहे हैं.