भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय संबंधों में उतार-चढ़ाव रहे हैं, लेकिन वर्तमान में दोनों देशों ने अपने रिश्तों में सुधार लाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। 1962 के युद्ध और हाल के वर्षों में सीमा पर तनावों के बावजूद, भारत और चीन दोनों इस बात को मानते हैं कि इन तनावों को कम कर और सहयोग बढ़ाकर ही आगे बढ़ा जा सकता है। भारत को चीन से अपने संबंधों में संतुलन बनाए रखना है, ताकि सुरक्षा और स्वहित की रक्षा की जा सके।
चीन की विस्तारवादी नीति और पूर्वी लद्दाख में हुई झड़पें इस बात का प्रमाण हैं कि चीन पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं किया जा सकता। हालांकि, भारत और चीन के नेताओं ने हाल ही में इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाए हैं, जिनमें कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने का निर्णय और वीजा प्रक्रिया को सरल बनाने पर सहमति शामिल हैं।
2025 में भारत-चीन डिप्लोमेटिक रिश्तों की 75वीं वर्षगांठ है, और यह एक महत्वपूर्ण अवसर है जब दोनों देशों को आपसी संबंधों को बेहतर बनाने के लिए इस अवसर का पूरा लाभ उठाना चाहिए। दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की हाल की बैठक में नदियों के प्रवाह, ट्रांसबार्डर रिवर डाटा का आदान-प्रदान, और दोनों देशों के नागरिकों को एक-दूसरे के बारे में बेहतर जानकारी प्राप्त करने के उपायों पर विचार किया गया।
यद्यपि चीन से रिश्तों को लेकर सतर्कता बरतनी जरूरी है, फिर भी इसे व्यावहारिक तरीके से संभालने की आवश्यकता है। इस दिशा में संवाद और सहयोग बढ़ाने से दोनों देशों के बीच संबंधों में सकारात्मक बदलाव आ सकता है, बशर्ते दोनों देश आपसी सम्मान और विश्वास पर जोर दें।
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