हमारी संसद का स्तर लगातार गिरता जा रहा है? कामकाज के दिन कम हो रहे हैं, जो दिन हैं वो भी लगातार हंगामें में व्यर्थ हो जाते हैं, तथ्यों और संदर्भों की दृष्टि से बहस का स्तर गिर ही रहा है. 20 दिसंबर को संपन्न शीत सत्र को ही लें. 25 नवंबर से शुरू हुए इस सत्र में कुल 70 घंटे से ज्यादा का व्यवधान हुआ, जिसमें 65 घंटे का नुकसान तो केवल अंतिम पांच दिनों में हुआ. 19 दिसंबर को हुई झड़प के बाद तो स्थिति इतनी बिगड़ गयी कि सत्र के अंतिम 72 घंटों में से 65 घंटे 15 मिनट का समय हंगामे की भेंट ही चढ़ गया. संसद के शीत सत्र के आखिरी चरण में नियम 377 के तहत 397 ऐसे मुद्दे उठाए गए जिनका सदन के मौजूदा सामान्य कामकाज से सीधा रिश्ता नहीं था. अंततः सत्र को अनिश्चित काल के लिए समाप्त कर दिया गया. देश की संसद साल में कितने घंटे काम करती है? कामकाज के लिहाज से भारतीय संसद का परफोर्मेंस दुनिया के दूसरी देशों की संसद के मुकाबले कहां आता है? क्या भारतीय संसद में कामकाज की प्रवृत्ति लगातार घट रही है? संसद के संचालन का कितना खर्च आता है ? हम ब्रिटेन को लें तो यहां की संसद यानी हाउस ऑफ कामंस में औसतन सालाना 1400 1500 घंटे काम होता है. अमेरिका की संसद, अमेरिकी कांग्रेस (हाउस और सीनेट) को लें तो साल में लगभग 1500- 1600 घंटे काम होता है. इसी तरह जर्मनी की संसद बुंडेसटाग साल में लगभग 900-1000 घंटे काम करती है. जबकि हमारी यानी भारतीय संसद साल में औसतन 60-70 दिन यानी 300-350 घंटे काम करती है. इसमें भी हम उन घंटों को नहीं गिन रहे जो पक्ष-विपक्ष की जिद के चलते जाया हो जाते हैं.