प्रबंधन की लापरवाही और अग्निशमन की समुचित व्यवस्था नहीं होना एक बार फिर अस्पताल में मरीजों की जलने से मौत का कारण बन गया. तमिलनाडु के डिंडीगुल जिले में त्रिची रोड पर स्थित निजी अस्पताल में भीषण आग लगने से 7 लोगों की मौत हो गई जिसमें 1 बच्चा और 3 महिलाएं शामिल हैं. 20 से ज्यादा लोग घायल हो गए. अस्पताल में मरीज अपना इलाज कराने के लिए भर्ती होता है लेकिन उसे क्या पता कि वहां उसकी आग की लपटों में घिर कर मौत हो जाएगी. पिछले 5 वर्षों में अस्पतालों में अग्निकांड के 100 से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. प्रशासन का दायित्व है कि वह बहुमंजिला अस्पतालों में अग्निशमन के इंतजाम का निरीक्षण करे. आमतौर पर आग लगने की वजह शार्टसर्किट बताई जाती है. इसे देखते हुए सतर्कता बरतनी जरूरी है. अस्पतालों में अग्निशमन उपकरण (फायर एक्सटिंग्विशर, होसपाइप, रेत भरी बाल्टियां, प्रिरंकलर) होने चाहिए. स्टाफ को भी आग बुझाने का प्रशिक्षण दिया जाए. बिजली की वर्षों पुरानी वायरिंग व लटके हुए तार खतरनाक हो सकते हैं जिसे बदला जाना चाहिए. एसी को क्षमतानुसार चलाना ही उचित है वरना उससे भी चिनगारियां निकल सकती हैं. जिन अस्पतालों में नवजात शिशुओं के लिए इन्क्यूबेटर हैं वहां अत्यंत सावधानी व निरीक्षण आवश्यक है कि कहीं तापमान बढ़ने से इन्क्यूबेटर जलती हुई हुई भट्टी न बन जाए. भंडारा के अस्पताल में ऐसा ही हुआ था. अस्पताल में अनधिकृत निर्माण न हो, सीढ़ियां संकरी न हों तथा लिफ्ट दुरुस्त रहे, इसका ध्यान रखना जरूरी है. सिक्योरिटी को भी आग लगने की आशंका के प्रति मुस्तैद रखा जाए. यदि अस्पताल में जनरेटर है ते तो देखना होगा कि वह बहुत ज्यादा गर्म होकर कहीं आग न पकड़ ले.