Uncategorizedताजा खबरदेश- दुनियाफ़िल्मी दुनिया

मोहम्मद रफी के जनाजे में पहुंचे थे 10 लाख लोग

शाहिद ने जहां रफी साहब की जिंदगी से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें शेयर कीं, वहीं उदित नारायण ने बताया कि उन्हें अपनी पहली ही फिल्म में रफी साहब के साथ गाने का मौका मिला था।

उदित ने ये भी कहा कि रफी साहब से पहली मुलाकात वो कभी नहीं भूल सकते हैं। न ही उस दिन को कभी भूल पाएंगे जब रफी साहब इस दुनिया से रुखसत हुए थे। उस दिन 10 लाख लोग उनके जनाजे में शामिल हुए थे।रफी साहब ने कभी इस बात का जिक्र तो नहीं किया कि उन्हें अपने कौन से गाने सबसे ज्यादा पसंद थे, लेकिन जो मैं जानता हूं, उसके मुताबिक वो तीन गाने हर कॉन्सर्ट में जरुर गाते थे। इससे मुझे हमेशा लगता था कि वो तीन गाने ही उनके सबसे पसंदीदा थे। मेरे हिसाब से फिल्म ‘बैजू बावरा’ का ‘ओ दुनिया के रखवाले’, फिल्म ‘दुलारी’ का ‘सुहानी रात ढल चुकी’ और फिल्म ‘कोहिनूर’ का ‘मधुबन में राधिका नाचे रे’ उनके फेवरेट गाने थे। भले ही फरमाइश आए या न आए, उनकी हर परफॉर्मेंस में ये तीन गाने मैंने हमेशा उन्हें गाते हुए सुना था। उनके तो हर गाने अमर हैं।’

पार्टियों से दूर भागते थे
‘अब्बा से मिलने के लिए घर पर कई लोग आते थे, लेकिन हमें वो कभी किसी से मिलने नहीं देते थे। वो हमें फिल्म इंडस्ट्री से दूर रखते थे और नहीं चाहते थे कि हम फिल्म इंडस्ट्री में घुसें। वो खुद भी काफी प्राइवेट इंसान थे। वो फैमिली ओरिएंटेड थे और काम के अलावा अपना सारा समय परिवार को देना ही पसंद करते थे। वो फैमिली मैन थे और उन्हें सोशल होना बिलकुल पसंद नहीं था।

किसी की शादी या कोई फंक्शन में भी जाते थे तो वहां पहुंचकर गुलदस्ता या तोहफा देते थे और तुरंत वहां से निकल आते थे। उन्हें पार्टी में जाना बिलकुल पसंद नहीं था। वो ज्यादा बात भी नहीं करते थे।

वीकेंड पर हम लोनावला वाले बंगले पर चले जाते थे। अब्बा काम में कितने भी बिजी रहें, लेकिन फिर भी वे एक दिन का वक्त हमारे साथ बिताने के लिए जरूर आते थे।

जब उदित नारायण ने किया मोहम्मद रफी को इम्प्रेस
​​​​​​​
रफी साहब के बारे में बात करते हुए उदित नारायण बोले, ‘मैं खुद को उन चंद खुशकिस्मत गायकों में से एक मानता हूं, जिन्हें रफी साहब के साथ गाने का मौका मिला। मैं मुंबई में 1978 में आया था। उसके 1 साल बाद मुझे फिल्म ‘19-20’ में रफी साहब के साथ गाने का मौका मिला। उस गाने के बोल थे ‘मिल गया मिल गया।’

उस गाने की रिकॉर्डिंग और रिहर्सल कुल 2 घंटे तक फेमस स्टूडियो में हुई थी। मैं उस लम्हे को कभी नहीं भूल सकता जब उस गाने से पहले मेरी रफी साहब से मुलाकात हुई थी। वह अपनी फिएट कार से उतरे। उन्होंने सफारी सूट पहन रखा था और चेहरे पर मुस्कान।

उन्हें देखते ही मैं तो उनके चरणों पर गिर गया। उन्होंने गले लगाते हुए कहा, ‘घबराओ मत बरखुरदार। मैं भी कभी कोरस में गाया करता था।’ उनके अल्फाजों ने 2 मिनट में मेरी घबराहट दूर कर दी। वह इतनी बड़ी शख्सियत थे, मगर उनमें अहंकार नहीं था।म्यूजिक डायरेक्टर राजेश रोशन ने सेफ्टी के लिए वह गाना एक बार और रिकॉर्ड करवाया। रफी साहब ने मना नहीं किया। उन्होंने फिर से रिकॉर्डिंग की। मैंने भी की। रफी साहब को मेरा काम अच्छा लगा। उन्होंने कहा, ‘तुम गाते अच्छा हो। क्या गिटार बजाना सीख रहे हो? सीख जाओ अगर स्टेज पर तुमने गिटार के साथ गाना गाया तो महफिल लूट सकते हो।’

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button