लाइसेंस एक्सपायर; 5 बेड की परमिशन, लेकिन 12 बच्चे एडमिट किए
‘अभी तो बच्चे का नाम भी नहीं रखा था। बुधवार को ही तो पैदा हुआ था। सांस लेने में दिक्कत थी। हॉस्पिटल वालों ने कहा कि इसे सांस वाली मशीन में रखना पड़ेगा। फिर उन्होंने एंबुलेंस बुलाकर हमें इस हॉस्पिटल में भेज दिया। यहां रोज के 16 हजार रुपए दे रहे थे। हॉसशहनाज खातून दिल्ली के जीटीबी हॉस्पिटल में भतीजे की डेडबॉडी लेने आई थीं। उनकी भाभी की 5 दिन पहले डिलीवरी हुई थी। बच्चे की तबीयत बिगड़ने पर डॉक्टरों ने विवेक विहार में न्यू बेबी केयर सेंटर में किया था एडमिट .
डॉ. नवीन का बैकग्राउंड जानने हम पश्चिम विहार में उनके घर भैरो इन्क्लेव पहुंचे। घर का गेट बंद था, लेकिन अंदर हलचल दिखाई दे रही थी। हमने सिक्योरिटी गार्ड से पूछा तो उन्होंने बताया कि नवीन एक दिन पहले कहीं चले गए हैं। ‘मैंने अपने लोगों को चेक करने के लिए भेजा था। हॉस्पिटल वालों ने उन्हें बताया कि वहां रखे सिलेंडर अस्पताल के हैं। उन्हें दिल्ली सरकार ने इसका लाइसेंस दिया है। सरकार की गाइडलाइंस है कि जहां जगह कॉमर्शियल या मिक्स्ड होगी, वहां ग्राउंड फ्लोर पर ही काम कर सकते हैं। ये रोड कॉमर्शियल नहीं है। बावजूद इसके यहां अस्पताल खोला गया।’
राज आगे बताते हैं, ‘मेरी बेटी का जन्म राधा कुंज हॉस्पिटल में हुआ था। हम उसे घर ले गए थे। 10 दिन बाद उसे बुखार आ गया। सांस लेने में भी दिक्कत हो रही थी। हम बेटी को लेकर हॉस्पिटल पहुंचे। डॉक्टर ने एंबुलेंस बुलाई और हमें न्यू बॉर्न बेबी केयर सेंटर भेज दिया था।’ शहनाज बताती हैं, ‘बच्चे को जन्म के बाद से सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। उसकी डिलीवरी मंगलम नर्सिंग होम में हुई थी। वहां से डॉक्टर ने न्यू बॉर्न बेबी केयर सेंटर में रेफर कर दिया था। मुझे सुबह मोबाइल पर हादसे के बारे में पता चला।’हॉस्पिटल में आग लगने के बाद मौके पर पहुंचे जितेंदर सिंह शंटी बताते हैं, ‘पहले मुझे लगा बम धमाका हुआ है। मैं यहां पहुंचा, तो एक जली वैन खड़ी थी। पता चला कि उसमें ऑक्सीजन सिलेंडर रखे थे। हॉस्पिटल का स्टाफ बड़े सिलेंडर से छोटे सिलेंडर में ऑक्सीजन ट्रांसफर कर रहे थे जिससे ऑक्सीजन ब्लास्ट हो गया .
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